हसन खां मेवाती

पं० राजवर्धन अग्निहोत्री

RSS के स्थापना दिवस और विजयादशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर जनसंख्या और आंतकवाद के मुद्दे को उठा दिया। नागपुर में हुए कार्यक्रम मे जहां सीधे तौर पर बढ़ती जनसंख्या के लिए मुस्लिम समाज को जिम्मेदार ठहराया। वहीं मुस्लिम समाज को जोड़े रखना भी नहीं भूले। दरअसल भागवत ने कहा कि वे क्वार्टरमास्टर अब्दुल हमीद (जिन्हें 1965 के भारत-पाक युद्ध में उनकी वीर भूमिका के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था) या हसन खान मेवाती जैसे देशभक्तों का अनुसरण कर सकते हैं, जिन्होंने राणा सांगा के साथ बाबर से लड़ाई लड़ी थी। हसन खान मेवाती मेवात वंश के राजा थे, जिनकी राजधानी अलवर थी। दर्ज इतिहास के अनुसार जब पानीपत युद्ध के बाद बाबर दिल्ली और आगरा में अपनी सल्लनत (अधिकार) चाहता था, तब महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड) और हसन खां (मेवात) बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामने खडे थे। बाबर ने हसन खान मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये उन्हें इस्लाम का वास्ता दिया तथा एक लडाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खान के पुत्र को बिना शर्त छोड दिया, लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने धर्म का वास्ता काम नहीं आया। असल में हसन खां मेवाती ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी का साथ दिया। उन्होंने विदेशी अतिक्रमणकारी बाबर के खिलाफ अपनी सेना उतार दी। इस युद्ध में बाबर ने मेवाती के पुत्र को बंधक बना लिया। हसन खां मेवाती वतन परस्ती की मिसाल थे। हसन खां मेवाती भारत माता के वो सच्चे सपूत थे जिन्होंने बाबर को रोकने के लिए अपने राज्य की कुर्बानी तक दे दी। एक दिन मेवाती को बाबर का पैगाम मिला, उसमें बाबर ने मजहब की दुहाई देते हुए उससे मिलने का प्रस्ताव दिया। बाबर ने इसके साथ मेवाती को कई और लालच दिए, लेकिन मेवाती ने उनका पैगाम ठुकराकर देशभक्ति को चुना। इसके बाद बाबर ने धमकी देना शुरु किया, बाबर ने लिखा कि मैं तुम्हारे पुत्र को रिहा कर दूंगा, तुम मेरे से आकर मिलो, इसपर मेवाती ने जवाब दिया कि अब हमारी मुलाकात युद्ध के मैदान में होगी। इस युद्ध में लोदी हार गए, लेकिन मेवाती नहीं हारे, वे बाबर के खिलाफ लडऩे के लिए राणा सांगा के साथ मिल गए।
अलवर. राजस्थान वीर सपूतों की भूमि है। राजस्थान के रजवाड़ों ने कई युद्ध लडकऱ इस भूमि को गौरवांवित किया है। राजस्थान के वीर योद्धाओं में सबसे शीर्ष पर महाराणा प्रताप का नाम आता है। कहा जाता है कि अकबर महाराणा प्रताप के नाम से कांपता था। लेकिन आज हम आपको राजस्थान के ऐसे वीर के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे अकबर का दादा बाबर भी घबराता था। जिससे बाबर भी घबराता था, उस महान राजा का नाम था हसन खां मेवाती। हसन खां मेवाती अलवर राजधानी के राजा थे। अमर शहीद राजा हसन खां मेवाती नाम की किताब लिखने वाले इतिहासकार सद्दीक मेवा लिखते हैं कि हसन खां मेवाती सोलहवीं शताब्दी के महान देश भक्त राजा थे। अकबरनामा में उस समय के जिन चार योद्धाओं का वर्णन है, उनमें से हसन खां मेवाती एक हैं। राजा हसन खां मेवाती ने कभी विदेशी अतिक्रमणकारियों के साथ कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने देश की खातिर हिंदू राजाओं का साथ दिया था। हसन खान मेवाती पूर्व शासक खानजादा अलावल खान के बेटे और मेवात राज्य के एक महत्वाकांक्षी मुस्लिम राजपूत शासक थे। उनके वंश ने लगभग 150 वर्षों तक मेवात राज्य पर शासन किया था। वह राजा नाहर खान मेवाती के वंशज थे, जो 14 वीं शताब्दी में मेवात के वली थे। उन्होंने 1492 में अलवर किले का निर्माण किया। वह खानवा के युद्ध में मारे गए थे। तो आइए आज इस वीडियो में हम आपको हसन खान मेवाती की जीवनी के बारे में बताएगे। हसन खान मेवाती का जन्म मेवात में हुआ था। उनके पिता का नाम अलावल खान था। उनके पुत्र का नाम ताहिर खां था। हसन खां 1505 ई० में मेवात के राजा बनें। 1526 ईसवीं में जब मुगलबादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया तो इंब्राहीम लोदी, हसन खां मेवाती तथा दिगर राजाओं ने मिलकर पानीपत के मुकाम पर बाबर मुकाबला किया इसमें में राजा हसन खां के पिता अलावल खां शहीद हो गए। पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर तो अपना अधिकार जमा लिया लेकिन भारत सम्राट बनने के लिये उसे महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड) और हसन खां (मेवात) बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामना करना पड़ा । बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये उन्हें इस्लाम का वास्ता दिया हसन खां मेवाती ने बाबर का प्रस्ताव ठुकराकर कहा था कि अब हमारी मुलाकात मैदान ए जंग में होगी। एक लडाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खा के पुत्र को बाबर ने बिना शर्त छोड दिया, लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने धर्म का वास्ता काम नहीं आया । खानवा की लड़ाई मेवाड़ के राणा सांगा और बाबर के बीच हुई। उस समय हसन खां मेवाती की देशभक्ति देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी थी। हसन खां मेवाती ने इस लड़ाई में राणा सांगा का साथ दिया। 15 मार्च 1527 को राजा हसन खां ने राणां सांगा के साथ मिलकर ‘खानवा’ के मैदान में बाबर की सैना दोनो जमकर लडे अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ लगा और वे हाथी के ओहदे से नीचे गिर पडे जिसके बाद सैना के पैर उखडने लगे तो सेनापति का झण्डा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर सैना को ललकारते हुऐ उन पर जोरदार हमला बोल दिया। राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुडसवार सिपाही बाबर की सैना पर टूट पडे उसी समय के दौरान एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और इसके बाद आखरी मेवाती राजा का हमेशा के लिये 15 मार्च 1527 को अंत हो गया। 15 मार्च 1527 को ‘खानवा’ के मैदान में बाबर के साथ हुए युद्ध में वे शहीद हो गए।

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